बुधवार, 2 मार्च 2011

यह प्रजातंत्र तो नही हो सकता

एक बार फिर आम बजट को देखकर हम कह सकते है कि यह आम बजट आम के लिए नही बल्कि खास लोगो ( कारपोरेट वर्ग ) को ध्यान में रखकर जैसे उनके लिये ही बनाया गया है भारत एक प्रजातांत्रिक देश है जनता का जनता के लिए जनता के द्वारा शासन है और जनता का हित सर्वोपरीय है । जनता से अभिप्राय वह आम जन जो सबसे पीछे खड़ा है और उसका सबसे पहले सबसे अधिक ध्यान रखना अर्थात प्रजातंत्र । क्या भारत में ऐसा है बहुत खेद के साथ कहना पढ़ता है कि कतई नही है आजादी के बाद से ही भारत मे जो राज रहा है उसे सही मायनो में हम प्रजातंत्र नही कह सकते है क्योकि उसको चलाने में न तो कभी उसकी कोई भूमिका कभी रही है न ही कभी उसके हितो का किसी प्रकार से कोई वास्तविक ध्यान रखा गया है न उसकी परवाह की गई है न ही किसी को उसकी कभी कोई फिक्र रही है । सारा तंत्र अमीर ,बाहुबली माफिया , अर्थात ताकतवर लोग चला रहे है और उनके हितो के अनुसार ही सारे नीति नियम बनाये जाते है और उनकी सुविधा का हर तरह से भरपूर ध्यान रखकर उन्हे पोषित किया जाता है ,सभी कुछ उनकी इच्छा और इशारो पर निर्भर करता है , प्रजा तो बेचारी दो मुट्ठी गेंहॅूं चाँवल रियायती दरो पर पाने के लिए कड़ी धूप में लंबी लाइनो में खडी रहती है और ये ताकतवर देश के कर्णधार करोड़ो अरबो रूप्या बैठे बैठे यूँ ही डकार जाते है न ही इन्हे कोई पकडने वाला है न ही नही कोई कुछ पूछने वाला है । कहने को हमारे देश में आजाद प्रेस है आजाद न्यायपालिका है परन्तु आज तक न तो किसी कांड़ का कोई फालोअप मिलता है नही आज तक किसी बड़ी मछली को कोई सजा ही हो पाई है ।

प्रजातंत्र मे प्रजा के पास सर्वाधिक विकल्प होने चाहिए परन्तु हमारे इस प्रजातंत्र मे हम देखते है कि प्रजा के लिए कोई विकल्प ही नही रखा गया है सारे रास्ते ताकतवर लोगो के महलो पर जाकर रूक जाते है ,और जिस प्रजातंत्र में प्रजा के लिए कोई विकल्प ही न हो वह प्रजातंत्र तो नही हो सकता ।

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