भाग--- 2
अधोपतन एक नोबल प्रोफ़ेशन का - 2
डाक्टरो और अस्पतालो की लापरवाही का एक उदाहरण यहां प्रस्तुत है --- एक परिचित व्यक्ति जिनकी किडनी मे समस्या थी और उसके लिए वे मंहगी दवाये खा रहे थे परहेजी जीवन जी रहे थे । एक दिन वे स्कूटर पर कहीं जा रहे थे एक ट्रक ने उन्हे टक्कर मारी वे गिरे और उनके बांये पैर मे गंभीर चोटें आई | उन्हे पूना के एक प्रसिद्ध अस्पताल मे भर्ती किया गया उनके पैर का आपरेशन किया गया । उन्हे होश आ चुका था और वे घर जाने के बारे मे सोचने लगे थे । उनके घाव सुखाने के लिए उन्हे अत्यंत महंगे एवं हैवी एंटी बायोटिक के इन्जेक्शन लग रहे थे जो उनकी किडनी के लिए जहर के समान साबित हुए और अचानक किडनी के फेल हो जाने से उनकी मौत हो गयी । इस इलाज मे उनका घर भी बिक गया । वास्तव मे यह ड़ाक्टरो की आपराधिक लापरवाही का उदाहरण है ,क्या इलाज करते हुए यह ड़ाक्टरो की ङ्यूटी नही है कि कोई भी दवा देते समय वे देखें कि यह दवा इस मरीज के लिए जानलेवा तो साबित नही होगी, क्या डाक्टरो को यह भी नही देखना चाहिए था कि वह पहले ही किडनी की दवा खा रहे है उन्हे इतने हैवी एंटीबायोटिक न दिये जाये । परन्तु हो सकता है कि उस एंटीबायोटिक बनाने वाली कम्पनी ने उन्हे कुछ टारगेट दिया हो । उनके छोटे से लालच के आगे मरीज के जीवन का क्या मूल्य ? और उन्हे इसके लिए कही कोई पूछने वाला भी नही है ।
एक अन्य उदाहरण मे - इन्दौर के पास के एक गांव मे रहने वाले एक गरीब व्यक्ति जिनकी कामन बाइल डक्ट मे रूकावट हो गयी थी इन्दौर आये और एक प्रसिद्ध सर्जन को दिखाया उसने एक प्रसिद्ध अस्पताल मे उन्हे भर्ती कर ऐन्ड़ोस्कोपी से एक कृत्रिम नली लगा दी । और उनसे सत्तर हजार रूपये ले लिए । तीन माह बाद उन्हे वहां फिर से रूकावट हो गयी और उसमे बहुत तेज दर्द भी हो रहा था उन्होने उसी डाक्टर से सम्पर्क किया डाक्टर ने कहां कि एक लाख रूपया हो तो मेरे पास आना । नहीं तो आने की कोई जरूरत नही है । अब उनके पास एक लाख रूपया नही था सो वे बड़े सरकारी अस्पताल में भर्ती हुए वहां के डाक्टर को प्रायवेट में फीस देकर भी आये परन्तु वह डा. तीन दिन तक फीस लेकर भी खुद अस्पताल में होते हुए उन्हे देखने भी नही आया तबियत ज्यादा बिगड़ने पर रातोरात घबराकर वे फिर एक प्रायवेट अस्पताल मे भागे वहां भी कुछ लूटामारी हुई और वहां उन्होने प्राण त्याग दिये इस बीच उन्होने असीम पीडा भोगी । इस इलाज के लिए उन्हे अपनी पुरखो की खेती भी बेचना पडी ।
मरीज के परिजनो ने बाद मे आशंका व्यक्त की थी कि मरीज को प्रायवेट अस्पताल मे भर्ती की प्रक्रिया करते हुए ही मौत हो गई थी फिर भी दो घंटे तक परिजनो को शव के पास जाने देखने भी नही दिया और बाद मे कपड़े से सी करके दे दिया दो घंटे मरीज के शव के साथ उस प्रायवेट अस्पताल वालो ने क्या किया, कही उनके शरीर के अंग चुराने जैसी कोई हरकत तो नही कर ली गई ? शोकाकुल परिवार जन विलाप करते हुऐ एक दूसरे को कठिनाई पूर्वक किसी तरह संभाल रहे थे इस गम्भीर गमगीन माहोल में उन्होने अपने सन्देह व आशंका को उजागर करना उचित नही समझा और मौन रह गये । इस तरह कॆ कांड़ किये जाना कोई बहुत बड़ी बात नही है क्योकि इस तरह की अनैको घटनाये हमारे देश मे पहले भी हो चुकी है उनमे से कुछ मामले उजागर भी हुए है और अंगचोर गिरोह गिरफ़्तार भी किये गये थे जिनमे ड़ाँक्टर भी शामिल थे । हिला देने वाली इस प्रकार की हजारो जानी अनजानी दुखद घटनाऔं के कलंक से हमारा चिकित्सा जगत शर्मशार है । इस प्रकार से समूचे चिकित्सा क्षेत्र में ऐसा कुछ हुआ है और हो रहा है जो नही होना चाहिए ये लोग अपने छोटे से लाभ के लिए आप पर पहाड़ जैसा संकट धकेल सकते है एक समाचारपत्र ने निम्न घटना पर लिखते हुए लिखा था कि मेरे शहर के डाक्टर डाक्टर नही रहे वे तो डाकू बन गये है , देखिये इतने नोबल प्रोफेशन को उन्होने कितना नीचे गिरा दिया है ।
पूर्व में दानी धर्मात्मा सेवा की भावना से अस्पताल आदि बनवाते थे और उनमे मुफ्त इलाज किया जाता था परन्तु आज तो हमारे अस्पताल को निवेश का एक बेहद ही शानदार लाभदायक व्यवसाय माना जाने लगा है धनी लोग अस्पताल में खूब निवेश कर रहे है क्योकि उससे उन्हे लाभ कई गुना रिटर्न होकर मिल रहा है । आज तो धर्मात्माओं के द्वारा बनवाये गये अस्पतालो को भी इन लालची लोगो ने अपने मकड़जाल मे फंसाना शुरू कर दिया है लाभ का प्रतिशत इतना भारी है कि लोभ का संवरण करना बेहद कठिन है होटलो की चेन की तरह अस्पतालो की ग्रुप चेन बन गई है और अस्पतालो मे सितारे लटक गये है ।
क्या यही हमारे विकास की गोरवशाली कहानी है , क्या इसे हम सच्चा विकास कह सकते है ,क्या इस तरह से कार्पोरेट सेक्टर को मनमाने व्यवसाय की इजाजत दी जानी चाहिए थी ,क्या इस तरह से लूटखसोट कर मरीजो की पीड़ा , कराहो से खेलकर लोभ लालच का यह भारी लाभदायक व्यवसाय खड़ा करने की अनुमति दी जानी चाहिए थी , कदापि नही , अब इस लालच का कोई तो अंत होना ही चाहिए ?
कहते है कि डाकन भी एक घर छोड देती है ,जब व्यवसाय के इतने सारे क्षेत्र खुले हुए है तो जनता के दुख और पीड़ा से खेलकर ही व्यवसाय करने की क्या आवश्यकता है ? और अगर मुनाफा ही मापदंड है तो मुझे तो जो नशे के ड्रग का व्यवसाय करते है उनमे और इन व्यवसायियो में ज्यादा फर्क दिखाई नही देता है क्याकि दोनो आज अपने लालच के चलते किसी भी हद तक गिर सकते है । मानवता के प्रति इस गम्भीर अपराध को अब तो रोका ही जाना चाहिए ?
डाक्टरो के चिकित्सा पेशे के बारे में बात करे और नर्सो के बारे में चर्चा न करे तो बात अधूरी रह जायेगी । क्योकि नर्सिंग का भी चिकित्सा कार्य मे बराबर का महत्व है एक समय था जब नर्सिंग के पेशे को भी बहुत ही पवित्र सम्मान प्राप्त था वह मरीज के दुखदर्द को अपनी सेवा, स्नेह ,ममता से दूर कर देती थी मरीज मे शीघ्र अच्छा होने का विश्वास पैदा कर देती थी वे मरीज की सेवा को भगवान की पुजा के बराबर मानती थी अनैको महिलाओ ने नर्सिंग को मानवसेवा का सुअवसर प्राप्त हो सके केवल इसलिए ही चुना था और इसके लिए कई महिलाओ ने विवाह भी नही किया ऐसे उदाहरण भी मौजूद है । परन्तु अब बहुत खेद के साथ कहना पड़ता है कि आज नर्सिंग से भी सेवा भावना समाप्त हो गई है ममता और स्नेह तो बहुत दूर का विषय हो गया है लापरवाही और गैरजिम्मेदाराना व्यवहार उनके आचरण का भी अंग बन गया है और यह सब स्वाभाविक भी है कि जब सब कुछ बिगड़ चुका हो तो सिर्फ उनसे ठीक बने रहने की उम्मीद करना भी अनुचित ही होगा । परन्तु अगर हमे सम्पूर्ण चिकित्सा के पेशे मे आमूलचूल सुधार करना है तो नर्सिंग के पेशे मे भी सुधार की और अनिवार्य रूप से ध्यान देना होगा क्योकि उसके बिना कोई भी सुधार अधूरा ही रहेगा ।
इन सब बुराइयो से निजात पाने के लिए सुझाव है कि ---
चूंकि चिकित्सा यह एक अत्यावश्यक सेवा है अतः सर्वोतम उपाय है कि समूचे चिकित्सा जगत का राष्टीयकरण कर दिया जाए। सारी चिकित्सा सेवा सरकार के आधीन व देखरेख में हो । समय समय पर डाक्टरो के ज्ञान की गुणवता की जांच होती रहनी चाहिए ।चिकित्सा पेशे का स्वास्थ ठीक रखने के लिए इसमे भ्रष्टाचारमुक्त छापामार जांच की परम्परा भी विकसित की जानी चाहिए । और जांच मे सेटिंग न हो पाये इसका भी ध्यान रखा जाना चाहिए । इस मामले ,मे हम ब्रिटेन का भी अनुसरण कर सकते है । आयुर्वेद ,होम्योपैथी को भरपूर प्रोत्साहन देना चाहिए अगर हम प्रजातांत्रिक देश है तो यह अवश्य होना ही चाहिए।
उपरोक्त लेख को हो सकता है अतिश्योक्ति या अपवाद कहकर खारिज कर दिया जाये और खारिज करने के उनके पास आधार भी हो परन्तु यह भी हो सकता है कि सच्चाई और कई परतो और घृणित रूप मे छुपी हो, फिर भी हमारा आशय यह नही है कि सारे डाक्टर ही ऐसे है और सारे मामलो में सर्जरी गैर जरूरी ही होती है , और सारे अस्पताल केवल लूटामारी मे लगे हुए है परन्तु आजकल इस दूसरी प्रवृति का काफी विस्तार और तेज गति से अनुसरण किया जाना पाया जा रहा है। अतः अब तो ज्यादा अच्छा तो यह होगा कि समय रहते इस पवित्र पेशे की पवित्रता पूर्णतः नष्ट न हो जाये इसके पहले ही जाग जाये और इस पवित्र पेशे की पवित्रता को पुर्नस्थापित करने के लिये आवश्यक सख्त कदम उठा ले यही आज समय की मांग और महती आवश्यकता है |
- गिरीश नागड़ा
हमारा आशय यह नही है कि सारे डाक्टर ही ऐसे है और सारे मामलो में सर्जरी गैर जरूरी ही होती है , और सारे अस्पताल केवल लूटामारी मे लगे हुए है परन्तु आजकल इस दूसरी प्रवृति का काफी विस्तार और तेज गति से अनुसरण किया जाना पाया जा रहा है। - गिरीश नागड़ा
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