सोमवार, 13 सितंबर 2010

संपत्ति की कीमतों में तेजी आ रही है। ऐसे में कई लोग आजकल संपत्ति में निवेश कर रहे हैं। मूल्यांकन आकर्षक हो तब संपत्ति बेची या दूसरी संपत्ति खरीदी जा सकती है या मुनाफावसूली की जा सकती है। विक्रम का स्थानांतरण मुम्बई से अपने गृहनगर भोपाल में हो रहा है। उन्होंने मुम्बई में 6 साल पहले एक घर खरीदा था। अब उन्होंने इसे बेचने में दिलचस्पी दिखाई है क्योंकि वे भोपाल में रहना चाहते हैं और उन्होंने इसके लिए एक खरीदार भी ढूंढ लिया है। वे इस पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं लेकिन उन्हें संपत्ति की बिक्री से जुड़े कर के विकल्पों के बारे में जानना है। जब संपत्ति की बिक्री की जाती है तो मुनाफा होने पर कर का भुगतान किया जाना चाहिए। संपत्ति के लेन-देन में सामान्य आयकर लागू नहीं होता बल्कि पूंजीगत लाभ कर लागू होता है। किसी संपत्ति के खरीद के 3 साल पूरा होने पर दीर्घावधि पूंजीगत लाभ लागू होता है। किसी संपत्ति के खरीदे जाने के 36 महीने के भीतर ही अगर इसकी बिक्री की जाती है तो इस पर अल्पावधि पूंजीगत लाभ लागू होता है। किसी व्यक्ति पर लागू होने लायक कर की दरों पर यह आधारित होता हैं। लागत मुद्रास्फीति सूचकांक के लागू होने के बाद दीर्घावधि पूंजीगत लाभ कर 20 फीसदी है। मुद्रास्फीति के प्रभाव की भरपाई करने के लिए सूचकांक लागू होता है। कैसे हैं विकल्प : उनके पास यह विकल्प है कि वे 20 फीसदी पर कर का भुगतान करें और अच्छी योजना में निवेश करके बेहतर रिटर्न पाएं। अगर वे इक्विटी म्यूचुअल फंड योजनाओं में निवेश करते हैं और मिसाल के तौर पर वह दोहरे अंक को बरकरार रखने में सफल होंगे तो उन्हें करमुक्त रिटर्न मिलेगा। यह एक बेहतर विकल्प है क्योंकि उन्हें कर की बचत करने के लिए कम प्रतिफल वाली योजनाओं में निवेश करने की जरूरत नहीं है या दूसरी संपत्ति में निवेश करने के लिए बाध्य होने की जरूरत नहीं है। कई लोग किसी भी कीमत पर कर की बचत चाहते हैं। अगर विक्रम कर का भुगतान नहीं करना चाहते हैं तो वे पूंजीगत लाभ बॉन्ड में अपने फायदे की रकम का निवेश कर सकते हैं। इन बॉन्डों को ग्रामीण विद्युतीकरण निगम (आरईसी), नेशनल हाउसिंग बैंक (एनएचबी) जैसी संस्थाएं जारी करती हैं। जैसे ही आपने संपत्ति की बिक्री कर दी उसके बाद इन बॉन्डों को खरीदने के लिए 6 महीने की अवधि होती है। फिलहाल इस पर करीब 6 फीसदी का प्रतिफल है और इसमें 3 साल की लॉक इन अवधि है। लेकिन इसमें दिक्कत इस बात की है कि विक्रम अगर इन योजनाओं में निवेश करके कर बचत में सफल भी रहते हैं तो वे कुछ खो रहे हैं क्योंकि इन बॉन्डों पर मिलने वाला ब्याज दर कम होता है। इसके अतिरिक्त इन बॉन्डों से होने वाली आय पर भी कर लगता है। कोई व्यक्ति एक वित्त वर्ष में पूंजीगत लाभ बॉन्ड में ज्यादा से ज्यादा 50 लाख रुपए निवेश कर सकता है। हालांकि साल के 1 अक्टूबर के बाद अगर लेन-देन होता है तो यह विंडो अगले वित्त वर्ष के लिए भी हो जाता है और इसमें 1 करोड़ रुपए के निवेश की इजाजत होती है। विक्रम के पास कर बचत का दूसरा तरीका भी हो सकता है। वह पूंजीगत लाभ की कीमत के लिए दूसरी संपत्ति भी खरीद सकते हैं। यह आयकर कानून की धारा 54 के अंतर्गत आता है। ऐसी संपत्ति बिक्री के एक साल पहले या इसके 2 साल के भीतर ही खरीदी जा सकती है। किसी संपत्ति के निर्माण के मामले में बिक्री की तारीख से 3 साल के समय की इजाजत दी जाती है। इस बीच रिटर्न दाखिल करने की तारीख से पहले मुनाफे को पूंजीगत लाभ जमा खाता में जमा करने की जरूरत है। इस अवधि के बाद इस पूंजीगत लाभ के लिए इस्तेमाल न की जानी वाली रकम पर 3 साल की अवधि के खत्म होने के पहले साल में आयकर लगाया जाएगा। ऐसे में इसके कुछ हिस्से का इस्तेमाल संभव है। विक्रम यह भी जानना चाहते हैं कि मुंबई में अपने घर की बिक्री करके भोपाल में वे घर खरीद सकते हैं जहां उन्हें स्थानांतरण के बाद रहना है। देश के किसी भी हिस्से में खरीद की इजाजत है। इस बात को लेकर काफी अस्पष्टता की स्थिति है कि कोई किसी एक आवासीय संपत्ति में निवेश करे या इससे ज्यादा में। शर्तो को अच्छी तरह से पढ़कर यह समझना बेहद अच्छा होगा कि एक ही आवासीय संपत्ति में निवेश किया जाए। विक्रम के दोस्त गौरव की दूसरी दिक्कत है। उन्होंने व्यावसायिक संपत्ति की बिक्री की है और वे अपनी पूंजीगत लाभ कर में बचत करना चाहते हैं। यह आयकर कानून की धारा 54एफ के तहत संभव है। यह आवासीय संपत्ति के मुकाबले पूंजीगत परिसंपत्तियों के लिए लागू है। कोई व्यक्ति सोने पर पूंजीगत लाभ की बचत कर सकता है जिसे पूंजीगत परिसंपत्ति के तौर पर देखा जाता है। किसी आवासीय संपत्ति की बिक्री के मुकाबले इसमें एक बड़ा अंतर है। आवासीय संपत्ति की बिक्री के मामले में निवेश की समय अवधि समान रहेगी। हालांकि ऐसा तभी हो पाएगा जब मौलिक परिसंपत्ति के हस्तांतरण की तारीख के वक्त उनके पास एक से ज्यादा आवासीय संपत्ति न हो। अब यह विक्रम पर निर्भर करता है कि वे संपत्ति खरीदना और निवेश करना चाहते हैं या कर देना चाहते हैं। jagran 13/09/2010

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